
hs fulka आज हम बात करेंगे 1984 में हुए सिख विरोधी दंगो पर आये अदालत के फैसलों की। दिल्ली हाई कोर्ट ने कांग्रेस नेता सज्जन कुमार को उम्रकैद की सजा सुनाई है। इसके साथ ही 34 साल से न्याय के इन्तजार की कुछ कड़ियाँ शुरू हुई है। उम्मीद है कि धीरे धीरे फैसले आएंगे और लोगो को सजा सुनाई जाएगी। इस फैसले के आने के तुरंत बाद एक शख्स जिसकी दाढ़ी सफ़ेद थी। उसने सबसे पहले आकर सबको अदालत के इस फैसले से रूबरू करवाया। वो शख्स है एच एस फुल्का। एच एस फुल्का जब से 1984 के दंगे हुए तब से यहाँ के पीड़ितों की आवाज बन गए।
एच एस फुल्का hs fulka एक ऐसे वकील है जिसने इस लड़ाई को लम्बे समय तक लड़ा। आपको बता दे जब 1984 में दंगे हुए तो खुद एच एस फुल्का और उनकी पत्नी मरते मरते बचे थे। उस वक़्त वो एक डाक्टर के यहाँ गए हुए थे। उदमादी भीड़ उस वक़्त दिल्ली में तांडव मचा रही थी। तब वो अपने मकान मालिक के यहाँ दो दिन तक छुपे रहे हो। इसके बाद वे जान बचाकर दिल्ली से भागे। दिल्ली से भागकर वे चंडीगढ़ पहुंच गए। चंडीगढ़ जाकर लगा अब उनकी जान बच गयी है और वे सुरक्षित है।
तब उन्हें याद आया कि दिल्ली में बहुत से सिख परेशान है अनाथ है और उन्हें कानून की मदद की जरूरत है। वे दिल्ली वापस लौट आये। दिल्ली आने के उन्होंने सिटीजन फॉर जस्टिस का गठन किया। यह कमेटी एक ऐसा आर्गेनाईजेशन था। जिसमे सारे पीड़ित अपनी फरियाद सुनाया करते थे। फिर को इसके वकील बने और उन्होंने देश के बड़े बड़े वकीलों को इससे जोड़ा ताकि सिखो की लड़ाई लड़ी जा सके। उसके बाद 1985 में जब मिश्रा कमीशन बना। तो इस कमीशन के सामने पेश होने वालो में एच एस फुल्का भी थे। एच एस फुल्का की लड़ाई अब यहाँ से आगे बढ़ती गयी।
न्याय पाने कि यह लड़ाई लगातार आगे बढ़ती जा रही थी। क्योंकि जो लोग आरोपी थे उनके सत्ता के शीर्ष लोगो के साथ सीधे सम्बन्ध थे। कोई आरोपी सांसद था या कोई बड़ा नेता था। कोई भी आरोपी कानून के शिकंजे में नहीं आ रहा था। 2001 आ गया लेकिन न्याय की आस अभी तक जगी नहीं। फिर एच एस फुल्का ने एक वेबसाइट बनाई। जिस वेबसाइट पर शुरू के दस दिन में लगभग डेढ़ लाख लोग आये। इस वेबसाइट के शुरू होने के साथ साथ एच एस फुल्का सिख दंगा पीड़ितों की आवाज बन चुके थे।
वे क़ानूनी लड़ाई लड़ते रहे। सबूत जुटाते रहे और इसी दौरान 2013 में सज्जन कुमार जैसे आरोपी नेता बरी हो गए। तब फुल्का hs fulka को लगा इसके लिए क़ानूनी ही नहीं बल्कि राजनैतिक लड़ाई भी जरुरी है। उन्होने आम आदमी पार्टी को जॉइन कर लिया। 2014 में उन्होंने लुधियाना से लोकसभा का चुनाव लड़ा। लेकिन एच एस फुल्का hs fulka चुनाव हार गए। लेकिन वो रुके नहीं रुके नहीं। अबकी बार उन्होंने विधानसभा का चुनाव लड़ा और वो जीत गए। अब वे पंजाब विधानसभा में विपक्ष के नेता चुन लिए गए।
अब उनको फिर लगा कि 1984 के दंगो की लड़ाई उन्हें वापिस बुला रही है। उन्होंने पंजाब विधानसभा से इस्तीफा दे दिया और एक बार फिर वो क़ानूनी लड़ाई के लिए दिल्ली कोर्ट में खड़े थे। लेकिन अबकी बार वो नई किस्मत के साथ आये थे। आरोपी कमजोर पड चुके थे। अबकी बार अदालत ने एक आरोपी को मृत्युदंड की सजा सुनाई और दूसरे मामले में सज्जन कुमार कैसे बड़े नेता आरोपी को उम्रकैद की।
अब भी बहुत मामले बचे हुए है जिनमे सजा सुनानी बाकि है। इन बाकि बचे मामलो में लड़ाई जारी रहेगी। हम एच एस फुल्का hs fulka की बहादुरी को सलाम करते है और उम्मीद करते है। वो आगे भी इस लड़ाई को जारी रखेंगे।
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